सम्राट अशोक की कहानी — "चंद्र के समान तेजस्वी, पर बदल गया उसका हृदय"“Emperor Ashoka — Bright as the Moon, Yet His Heart Changed”

कहते हैं, भारत की धरती पर कई महान राजा हुए... पर ऐसा कोई नहीं, जिसने युद्ध में विजय के बाद खुद के भीतर हार स्वीकार की। यह कहानी है — सम्राट अशोक महान की। सम्राट अशोक, बिंदुसार के पुत्र और चंद्रगुप्त मौर्य के पोते थे। उनके शुरुआती जीवन के बारे में कई किंवदंतियाँ हैं, जिनमें से एक यह है कि वे अपने कई सौतेले भाइयों को मारकर सिंहासन पर बैठे थे, हालांकि इसकी ऐतिहासिक पुष्टि पूरी तरह से नहीं हो पाई है। सम्राट बनने के बाद, अशोक ने अपने साम्राज्य का विस्तार करने के लिए कई युद्ध लड़े। उनका शासनकाल मौर्य साम्राज्य के चरमोत्कर्ष का प्रतीक था। उनका साम्राज्य अफगानिस्तान से लेकर बांग्लादेश तक और दक्षिण में कर्नाटक तक फैला हुआ था। उनकी सबसे प्रसिद्ध विजयों में से एक थी कलिंग (आधुनिक ओडिशा) पर आक्रमण। यह युद्ध उनके जीवन का सबसे निर्णायक मोड़ साबित हुआ।
मौर्य वंश के राजा बिंदुसार के पुत्र अशोक, बचपन से ही बुद्धिमान और पराक्रमी थे। उन्होंने युद्ध की कला, राजनीति और न्याय — सबमें निपुणता प्राप्त की। (दृश्य: तलवार चलाते हुए, सेनापति उनका गुणगान करते हुए) सेनापति: "युवराज अशोक, आप मौर्य साम्राज्य की शान बनेंगे!" पर इतिहास में वह दिन सबसे भयावह था — कलिंग का युद्ध। अशोक ने अपने साम्राज्य को बढ़ाने के लिए कलिंग पर आक्रमण किया। “विजय... मैंने विजय पा ली... पर किस मूल्य पर?” एक लाख से अधिक लोग मारे गए। उनकी चीखों ने सम्राट के हृदय को हिला दिया युद्ध के बाद, अशोक ने बुद्ध के उपदेश सुने — “अहिंसा, करुणा, और प्रेम ही सच्ची विजय है।” “अब मेरी तलवार नहीं, मेरी वाणी धर्म फैलाएगी।” अशोक ने हिंसा छोड़ दी और बौद्ध धर्म अपना लिया। उन्होंने धम्म के संदेश को भारत से लेकर श्रीलंका, नेपाल, और एशिया के कई देशों तक पहुँचाया। अशोक ने अशोक स्तंभ, शिलालेख, और स्तूपों का निर्माण कराया — जहाँ-जहाँ उनका संदेश अंकित है: “सब प्राणी मेरे समान प्रिय हैं।” युद्ध से शांति की ओर, हिंसा से करुणा की ओर — अशोक का यह परिवर्तन उन्हें "अशोक महान" बनाता है। आज भी जब भारत का प्रतीक चिन्ह देखते हैं — सिंह वाला स्तंभ — वह हमें याद दिलाता है उस सम्राट की कहानी, जिसने सत्ता से नहीं, अपने हृदय से संसार जीता।

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